यह लेख एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि हम अपनी धार्मिक परंपराओं और रीतियों को समझने और उन पर विचार करने के बजाय केवल बाहरी दिखावे और फैशन के रूप में स्वीकार करते हैं। गणेश विसर्जन के पीछे का शास्त्रीय और तात्त्विक उद्देश्य समझना बहुत ज़रूरी है, ताकि हम उसकी सही महत्ता और उद्देश्य को समझ सकें।
आपके द्वारा दिए गए तर्क और विचार काफी प्रासंगिक हैं:
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गोबर गणेश की मूर्ति: जैसा कि आपने बताया, शास्त्रों में केवल गोबर की प्रतिमा का ही गणेश पूजन और विसर्जन का विधान है। यह प्रतिमा न केवल पवित्र है, बल्कि यह माता पार्वती के साथ भगवान गणेश के उत्पत्ति की कहानी से जुड़ी हुई है। गोबर, जो हिन्दू धर्म में एक पवित्र और शुद्ध तत्व माना जाता है, का उपयोग विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों में किया जाता है।
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विसर्जन का शास्त्रिक उद्देश्य: आपने सही कहा कि वेदव्यास जी ने गणेश जी के शरीर की उष्मा को शांत करने और उनकी शांति के लिए विसर्जन किया था। यह विसर्जन केवल शास्त्र के हिसाब से था, जिसमें गणेश जी की मूर्ति को जलाशय में स्नान करवा कर शांति प्रदान की जाती थी।
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बाजारीकरण और आधुनिक स्वरूप: आजकल जो बड़े और भव्य गणेश प्रतिमाएं बनाई जाती हैं, उनका उद्देश्य केवल दिखावे का होता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों और रासायनिक रंगों से बनी प्रतिमाएं पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। विसर्जन के बाद ये प्रदूषण का कारण बनती हैं, जिससे जलाशय और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है।
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गणेश जी का विसर्जन: आपने सही सवाल उठाया है कि हम गणेश जी को विसर्जित क्यों करते हैं? क्या हम उनके साथ लक्ष्मी जी और रिद्धि-सिद्धि को भी अपने जीवन से निकाल रहे हैं? वास्तव में, यदि हम गणेश जी का विसर्जन करते हैं, तो उसके साथ इन आशीर्वादों को भी छोड़ देते हैं, जिससे हमारे जीवन में धन, सुख, और समृद्धि का नुकसान हो सकता है।
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धार्मिक समझ और परंपरा: जैसा आपने कहा, गणेश जी का विसर्जन केवल एक परंपरा के रूप में नहीं, बल्कि शास्त्रों और तात्त्विक दृष्टिकोण से होना चाहिए। यदि हमें इसका सही अर्थ समझा जाए तो हम सिर्फ गणेश जी की प्रतिमा की पूजा करें, लेकिन उनका विसर्जन न करें। इससे हमारे घर में गणेश जी का वास बना रहता है, और उनका आशीर्वाद हम पर हमेशा बरसता रहता है।
निवेदन:
आपका यह संदेश बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हमें अपनी परंपराओं और धर्म को समझना चाहिए और केवल दिखावे की परंपराओं को न अपनाकर, वास्तविक रूप से उनका पालन करना चाहिए। गणेश जी की वास्तविक प्रतिमा, जिसमें ऋद्धि और सिद्धि विद्यमान हो, का पूजन करें। इस तरह हम न केवल अपनी धार्मिक परंपराओं का सम्मान करेंगे, बल्कि पर्यावरण और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाएंगे।
धन्यवाद इस प्रेरक विचार के लिए! 🙏