ॐ का जप करते समय 108 प्रकार की विशेष भेदक ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं, जो किसी भी प्रकार के शारीरिक व मानसिक घातक रोगों के कारण का समूल विनाश करती हैं और शारीरिक व मानसिक विकास का मूल कारण बनती हैं। यह बौद्धिक विकास व स्मरण शक्ति के विकास में अत्यंत प्रभावी है।
संख्या 108 का अद्भुत रहस्य
संख्या 108 यह अद्भुत व चमत्कारी अंक बहुत समय से हमारे ऋषि-मुनियों के नाम के साथ प्रयोग होता रहा है।
स्वरमाला
-
अ → 1
-
आ → 2
-
इ → 3
-
ई → 4
-
उ → 5
-
ऊ → 6
-
ए → 7
-
ऐ → 8
-
ओ → 9
-
औ → 10
-
ऋ → 11
-
लृ → 12
-
अं → 13
-
अ: → 14
-
ऋॄ → 15
-
लॄ → 16
व्यंजनमाला
-
क → 1
-
ख → 2
-
ग → 3
-
घ → 4
-
ङ → 5
-
च → 6
-
छ → 7
-
ज → 8
-
झ → 9
-
ञ → 10
-
ट → 11
-
ठ → 12
-
ड → 13
-
ढ → 14
-
ण → 15
-
त → 16
-
थ → 17
-
द → 18
-
ध → 19
-
न → 20
-
प → 21
-
फ → 22
-
ब → 23
-
भ → 24
-
म → 25
-
य → 26
-
र → 27
-
ल → 28
-
व → 29
-
श → 30
-
ष → 31
-
स → 32
-
ह → 33
-
क्ष → 34
-
त्र → 35
-
ज्ञ → 36
-
ड़ → 37
-
ढ़ → 38
ओ अहं = ब्रह्म
ब्रह्म = ब + र + ह + म = 23 + 27 + 33 + 25 = 108
108 का विश्लेषण
-
मात्रिकाएँ (16 स्वर + 38 व्यंजन = 54) नाभि से आरंभ होकर ओष्टों तक आती हैं। इनका एक चढ़ाव और दूसरी बार उतार होता है, और दोनों बार में यह 108 की संख्या बन जाती हैं। इस प्रकार 108 मंत्र जप से नाभि चक्र से लेकर जीभाग्र तक की 108 सूक्ष्म तन्मात्राओं का प्रस्फुरण हो जाता है। जितना हो सके उत्तम है, परंतु नित्य कम से कम 108 मंत्रों का जप तो करना चाहिए।
-
मनुष्य शरीर की ऊँचाई
= यज्ञोपवीत (जनेऊ) की परिधि
= (4 अंगुलियाँ) का 27 गुणा होती है।
= 4 × 27 = 108 -
नक्षत्रों की कुल संख्या = 27
प्रत्येक नक्षत्र के चरण = 4
जप की विशिष्ट संख्या = 108
अर्थात् ॐ मंत्र जप कम से कम 108 बार करना चाहिए। -
एक अद्भुत अनुपातिक रहस्य
-
पृथ्वी से सूर्य की दूरी / सूर्य का व्यास = 108
-
पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी / चंद्रमा का व्यास = 108
अर्थात् मंत्र जप 108 से कम नहीं करना चाहिए।
-
-
हिंसात्मक पापों की संख्या 36 मानी गई है, जो मन, वचन, और कर्म तीन प्रकार से होते हैं। अर्थात् 36 × 3 = 108। अत: पाप कर्म संस्कार निवृत्ति हेतु किए गए मंत्र जप को कम से कम 108 बार करना चाहिए।
-
24 घंटे में एक व्यक्ति सामान्यतः 21,600 बार सांस लेता है। दिन-रात के 24 घंटों में से 12 घंटे सोने व गृहस्थ कर्तव्यों में व्यतीत होते हैं, और शेष 12 घंटों में व्यक्ति 10,800 बार सांस लेता है। इस समय में ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। इसीलिए 10800 की संख्या के आधार पर जप के लिए 108 निर्धारित करते हैं।
-
एक वर्ष में सूर्य 216,000 कलाएँ बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति बदलता है: छः महीने उत्तरायण और छः महीने दक्षिणायन में। अत: सूर्य छः माह की एक स्थिति में 108,000 बार कलाएँ बदलता है।
-
ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 और राशियों की संख्या 12 को गुणा करने पर 108 प्राप्त होती है।
-
संख्या 108 के अंक:
-
1 → ईश्वर का प्रतीक है
-
0 → प्रकृति का संकेत है
-
8 → जीवात्मा का संकेत है
यह तीन अनादि परम वैदिक सत्य हैं और यही पवित्र त्रेतवाद है।
-
सौर परिवार और ब्रह्मांड
-
सौर परिवार के प्रमुख सूर्य की रश्मियाँ
सूर्य से नौ रश्मियाँ निकलती हैं, और ये पृथ्वी के आठ वसुओं से टकराती हैं, जिससे 72 ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। इन 72 ध्वनियों पर संस्कृत के 72 व्यंजन आधारित हैं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियाँ संस्कृत की वर्णमाला से संबंधित हैं।
रहस्यमय संख्या 108 का हिंदू-वैदिक संस्कृति में महत्व
संख्या 108 का हिन्दू-वैदिक संस्कृति के साथ गहरा संबंध है। इसमें अनेक रहस्यों और आध्यात्मिक सिद्धांतों का समावेश है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं।