चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी 3,85,000 km है।
हम जिस समय पितृपक्ष मनाते हैं,
यानी कि आश्विन महीने के पितृपक्ष में,
उस समय पंद्रह दिनों तक चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट यानी कि लगभग 3,81,000 km पर ही रहता है। उसका परिक्रमापथ ही ऐसा है कि वह इस समय पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है।
इसलिए कहा जाता है कि पितर हमारे निकट आ जाते हैं।
शतपथ ब्रह्मण में कहा है:
“विभु: उध्र्वभागे पितरो वसन्ति”
यानी विभु अर्थात् चंद्रमा के दूसरे हिस्से में पितरों का निवास है।
चंद्रमा का एक पक्ष हमारे सामने होता है जिसे हम देखते हैं,
परंतु चंद्रमा का दूसरा पक्ष हम कभी देख नहीं पाते।
इस समय चंद्रमा दक्षिण दिशा में होता है।
दक्षिण दिशा को यम का घर माना गया है।
आज हम यदि आकाश को देखें तो दक्षिण दिशा में दो बड़े सूर्य हैं,
जिनसे विकिरण निकलता रहता है।
हमारे ऋषियों ने उसे श्वान प्राण से चिह्नित किया है।
शास्त्रों में इनका उल्लेख लघु श्वान और वृहद श्वान के नाम से हैं।
इसे ही आज के विज्ञान ने केनिस माइनर और केनिस मेजर के नाम से पहचाना है।
इसका उल्लेख अथर्ववेद में भी आता है।
वहाँ कहा है:
“श्यामश्च त्वा न सबलश्च प्रेषितौ यमश्च यौ पथिरक्षु श्वान”
(अथर्ववेद 8/1/19 के इस मंत्र में इन्हीं दोनों सूर्यों की चर्चा की गई है)।
श्राद्ध और पितृपक्ष का महत्व
श्राद्ध में हम एक प्रकार से उसे ही हवि देते हैं कि पितरों को उनके विकिरणों से कष्ट न हो।
इस प्रकार से देखा जाए तो पितृपक्ष और श्राद्ध में हम न केवल अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण कर रहे हैं,
बल्कि पूरा खगोलशास्त्र भी समझ ले रहे हैं।
श्रद्धा और विज्ञान का यह एक अद्भुत मेल है,
जो हमारे ऋषियों द्वारा बनाया गया है।
समाज में श्राद्ध की उपेक्षा
आज समाज के कई वर्ग श्राद्ध के इस वैज्ञानिक पक्ष को न जानने के कारण इसे ठीक से नहीं करते।
कुछ लोग तीन दिन में और कुछ लोग चार दिन में ही सारी प्रक्रियाएं पूरी कर डालते हैं।
यह न केवल अशास्त्रीय है, बल्कि हमारे पितरों के लिए अपमानजनक भी है।
जिन पितरों के कारण हमारा अस्तित्व है,
उनके निर्विघ्न परलोक यात्रा की हम व्यवस्था न करें!
यह हमारी कृतघ्नता ही कहलाएगी।
पितर का अर्थ
पितर का अर्थ होता है पालन या रक्षण करने वाला।
पितर शब्द पा रक्षणे धातु से बना है।
इसका अर्थ होता है पालन और रक्षण करने वाला।
एकवचन में इसका प्रयोग करने से इसका अर्थ जन्म देने वाला पिता होता है,
और बहुवचन में प्रयोग करने से पितर यानी सभी पूर्वज होता है।
इसलिए पितर पक्ष का अर्थ यही है कि हम सभी सातों पितरों का स्मरण करें।
इसलिए इसमें सात पिंडों की व्यवस्था की जाती है।
इन पिंडों को बाद में मिला दिया जाता है।
ये पिंड भी पितरों की वृद्धावस्था के अनुसार क्रमश: घटते आकार में बनाए जाते थे,
लेकिन आज इस पर ध्यान नहीं दिया जाता।
उम्मीद और निष्कर्ष
उम्मीद है उपरोक्त जानकारी होने के बाद जानकारी के अभाव में की गई/हुई गलतियों से हम बचने का प्रयास करेंगे।
ॐ नमः शिवाय