क्या आपको पता है कि हमारे वेदों में 7 प्रकार की वायु का उल्लेख मिलता है?
गोस्वामी तुलसीदासजी ने सुंदर कांड में, जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है:
“हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।”
अर्थात, जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो भगवान की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगे। हनुमान जी अट्टहास करके गरजे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे। इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है?
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि स्कंद पुराण और वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समान वायु, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, जल के भीतर जो वायु है उसका वेद-पुराणों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।
ये 7 प्रकार की वायु हैं:
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प्रवह (Pravaha):
पृथ्वी को लांघकर मेघमंडल तक जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवाह है। यह वायु अत्यंत शक्तिमान होती है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है, जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं। -
आवह (Avaha):
आवह वायु सूर्यमंडल में बंधी हुई है। इसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है। -
उद्वह (Udvah):
वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है। -
संवह (Samvah):
वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। इसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है। -
विवह (Vivaah):
पाँचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। इसके द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है। -
परिवह (Parivah):
वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं। -
परावह (Paravah):
वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
वायु के ये सात प्रकार और उनके गण:
जैसा कि आपने उल्लेख किया, इन 7 प्रकार की वायु के सात अलग-अलग गण (groups) हैं, जो विभिन्न ब्रह्मांडीय लोकों में विचरण करते हैं:
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ब्रह्मलोक
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इंद्रलोक
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अंतरिक्ष
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पूर्व दिशा (भूलोक की)
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पश्चिम दिशा (भूलोक की)
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उत्तर दिशा (भूलोक की)
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दक्षिण दिशा (भूलोक की)
इन गणों के बारे में कहा गया है कि कुल मिलाकर 49 मरुत होते हैं, जो देव रूप में आकाश में विचरण करते हैं। यह 49 मरुत विभिन्न दिशा और लोकों में बंटे हुए हैं और सभी अपनी-अपनी भूमिका निभाते हुए ब्रह्मांड में ऊर्जा और गतिशीलता बनाए रखते हैं।
वायु का महत्व:
वायु न केवल हमारे जीवन के लिए आवश्यक है, बल्कि यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड की संरचना और गति को बनाए रखने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विभिन्न प्रकार की वायु के गुण और उनके कार्य दर्शाते हैं कि हर एक वायु का स्थान और कार्य कितना विशिष्ट है। यह न केवल ब्रह्मांडीय संतुलन को बनाए रखती है, बल्कि जीवन के लिए आवश्यक ऊर्जा और गति का प्रवाह भी सुनिश्चित करती है।
निष्कर्ष:
वेदों और पुराणों में वायु के सात प्रकार का उल्लेख न केवल हमारे आकाशीय आस्थाओं और ब्रह्मांडीय ज्ञान को दिखाता है, बल्कि यह हमें यह भी समझाता है कि हम जितने अधिक जागरूक होंगे, उतना ही हम प्रकृति और ब्रह्मांड की गहरी संरचना और उसके तंत्र को समझ सकते हैं। यही वजह है कि प्राचीन ग्रंथों में वायु और उसके प्रभावों का इतना विस्तृत वर्णन किया गया है।
नारायण नारायण!