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भगवान श्रीकृष्ण की माया

यह कथा भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य माया और उनके अद्भुत रूपों की महानता को प्रकट करने वाली है। दुर्वासा ऋषि द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन का यह प्रसंग न केवल भगवान के अत्यंत लीलाधारी रूप को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि भगवान की माया किस प्रकार अपने भक्तों को भ्रमित कर सकती है, और फिर उसी माया में से भगवान के सत्य रूप का साक्षात्कार भी कराती है।

दुर्वासा ऋषि और भगवान श्रीकृष्ण की माया:

जब दुर्वासा ऋषि व्रजमण्डल में पधारे और उन्होंने बालकृष्ण को गोप-बालकों के साथ खेलते हुए देखा, तो उनके मन में एक बड़ा संदेह उत्पन्न हुआ। वे सोचने लगे कि क्या यह वही परमात्मा हैं, जो साक्षात भगवान हैं, या फिर यह केवल नंदबाबा का पुत्र है। इस समय भगवान श्रीकृष्ण की माया ने उनका मस्तिष्क भ्रमित कर दिया। लेकिन जैसे ही बालकृष्ण उनकी गोदी में आकर हंसी के साथ खेलते हैं, वे श्रीकृष्ण की माया से और अधिक मोहित हो जाते हैं।

दुर्वासा ऋषि ने जो अनुभव किया, वह केवल एक भौतिक दर्शन नहीं था, बल्कि एक अद्वितीय और अवर्णनीय आध्यात्मिक अनुभव था। जब वे श्रीकृष्ण के मुंह में समा गए, तो वहां उन्हें ब्रह्माण्ड का अद्भुत दर्शन हुआ। उन्होंने देखा कि किस प्रकार समस्त सृष्टि एक अदृश्य और विशाल अजगर में समाई हुई है। यह घटना भगवान श्रीकृष्ण की उस निराकार और सर्वव्यापी शक्ति का प्रतीक है, जिसमें समस्त ब्रह्माण्ड समाहित हैं।

दुर्वासा ऋषि का गोलोक में प्रवेश:

कथा में आगे बढ़ते हुए दुर्वासा ऋषि को गोलोक में श्रीकृष्ण का साक्षात दर्शन होता है। गोलोक, जो भगवान श्रीकृष्ण का परमधाम है, जहां उनका रूप अनंत रूप में है, और भक्तों के लिए वहां सब कुछ दिव्य और पूर्ण होता है। दुर्वासा ऋषि ने वहां भगवान श्रीकृष्ण को असंख्य गोप-गोपियों और गौओं के बीच दिव्य रूप में देखा। यही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण की अनगिनत लीलाएं होती हैं, जो भक्तों के मन को शांति और आनन्द से भर देती हैं।

गोलोक में श्रीकृष्ण की उपस्थिति ने दुर्वासा ऋषि के मन में भगवान की वास्तविकता को स्पष्ट किया। उन्होंने समझा कि वही बालकृष्ण, जो धूल-धूसरित होकर गोप-बालकों के साथ खेल रहे थे, वही असली परमात्मा हैं। श्रीकृष्ण की माया इतनी शक्तिशाली और विराट है कि वह एक साधारण बालक के रूप में भी दिख सकते हैं, और वही सर्वशक्तिमान भगवान भी हैं।

नंदनन्दन स्तोत्र:

दुर्वासा ऋषि ने भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की स्तुति की, जिसे “नंदनन्दन स्तोत्र” के नाम से जाना जाता है। यह स्तोत्र न केवल श्रीकृष्ण के रूपों को वर्णित करता है, बल्कि भक्तों के लिए यह एक दिव्य आशीर्वाद भी है। इस स्तोत्र में श्रीकृष्ण के सुंदर और आकर्षक रूप का वर्णन है—उनकी आँखें, ओठ, शरीर की कान्ति, और मुस्कान—all of which are symbols of divine beauty and grace. यह स्तोत्र भक्तों के लिए एक मार्गदर्शन है, जो उन्हें भगवान के रूपों और उनकी लीला के माध्यम से जीवन के उद्देश्य को समझने में मदद करता है।

“नंदनन्दन स्तोत्र” का महत्व:

यह स्तोत्र न केवल भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन का एक मार्ग है, बल्कि यह जीवन के सभी संकटों, विपत्तियों और दुखों से मुक्ति पाने का एक साधन भी है। भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान और उनकी स्तुति करने से व्यक्ति की मानसिक और आत्मिक स्थिति सुधरती है, और वह हर प्रकार की परेशानियों से उबर जाता है।

निष्कर्ष:

दुर्वासा ऋषि की श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा और भगवान श्रीकृष्ण की माया का दर्शन इस बात का प्रमाण है कि भगवान का अस्तित्व और उनकी लीला हमारी समझ से परे हैं। वे हर रूप में हैं—एक बालक के रूप में, एक युगपुरुष के रूप में, और एक परब्रह्म के रूप में। श्रीकृष्ण की दिव्य माया हमें यह सिखाती है कि संसार में जो कुछ भी घटित होता है, वह भगवान की इच्छा से होता है और भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

जय श्री कृष्ण! 🙏

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